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कृष्णा सोबती (Krishna Sobti Biography) का जीवन परिचय, साहित्यिक विशेषताएं, रचनाएँ, उपन्यास, कहानियाँ एवं भाषा शैली और उनकी प्रमुख रचनाएँ एवं कृतियाँ। कृष्णा सोबती का जीवन परिचय एवं साहित्यिक परिचय नीचे दिया गया है।
नाम | कृष्णा सोबती |
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जन्म | 18 जनवरी 1925 ई० |
जन्म स्थान | गुजरात (पश्चिमी वर्तमान में पाकिस्तान) |
पिता का नाम | दीवान पृथ्वी राज सोबती |
माता का नाम | दुर्गा देवी |
प्रमुख रचनाएँ | जिंदगीनामा, समय सरगम, डार से बिछुड़ी, बादलों के घेरे |
निधन | 25 जनवरी 2019 ई० |
जीवंत आयु | 94 वर्ष |
कृष्णा सोबती का जीवन परिचय in short:
जीवन परिचय – महिला कथा लेखिकाओं में अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाली कृष्णा सोबती का जन्म 18 जनवरी, सन् 1925 ई० को पाकिस्तान के गुजरात नामक स्थान पर हुआ था। इनकी शिक्षा लाहौर, शिमला तथा दिल्ली में हुई थी। इन का संबंध दिल्ली प्रशासन के प्रौढ़ शिक्षा विभाग से भी रहा है। इन्हें साहित्य अकादमी, हिंदी अकादमी, शिरोमणि सम्मान आदि पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। इन्हें साहित्य अकादमी ने महत्तर सदस्यता भी प्रदान की थी।
कृष्णा सोबती की प्रमुख रचनाएं :
रचनाएँ – कथा लेखिकाओं में कृष्णा सोबती का प्रमुख नाम है। इन्होंने अनेक कहानियाँ, उपन्यास, रेखाचित्र आदि लिखे हैं। इनकी रचनाओं में निम्न मध्यवर्गीय जीवन की विभिन्न विसंगतियों को यथार्थ के धरातल पर उजागर किया गया है। इन्होंने भारत-पाक विभाजन, नारी जीवन की विवशताओं आदि का अत्यंत मार्मिक चित्रण किया है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं—
उपन्यास- जिंदगीनामा, दिलोदानिश, ऐ लड़की, समय सरगम ।
कहानियाँ – मित्रो मरजानी, डार से बिछुड़ी, बादलों के घेरे, सूरजमुखी अँधेरे के ।
संस्मरण, शब्दचित्र – शब्दों के आलोक में, हम हशमत ।
कृष्णा सोबती की साहित्यिक विशेषताएं :
कृष्णा सोबती एक विशेषता से भरी हुई हिंदी कथा लेखिका थीं। उनकी साहित्यिक विशेषताएं निम्नलिखित थीं:
व्यक्तिगत अनुभवों का प्रतिबिंब: कृष्णा सोबती ने अपने लेखन में अपने व्यक्तिगत अनुभवों का विवरण किया। उन्होंने अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं, अनुभवों और भावों को अपनी रचनाओं में प्रकट किया। इससे उनकी कहानियों में अधिकतर पाठक सहजता से संबंध बना सकते थे।
नारी चित्रण: कृष्णा सोबती ने अपनी रचनाओं में महिलाओं के जीवन के विविध पहलुओं को अद्भुत रूप से चित्रित किया। उन्होंने महिलाओं की सामाजिक, पारिवारिक और व्यक्तिगत समस्याओं को उजागर किया और उनके साथीदारों के साथ उनके संबंधों की विविधता दिखाई।
कृष्णा सोबती को उल्लेखनीय सम्मान:
- 2017: ज्ञानपीठ पुरस्कार (भारतीय साहित्य का सर्वोच्च सम्मान)
- 2000-2001: शलाका पुरस्कार
- 1999: कछा चुडामणी पुरस्कार
- 1996: साहित्य अकादमी फेलोशिप
- 1982: हिन्दी अकादमी अवार्ड
- 1981: शिरोमणी पुरस्कार
- 1980: साहित्य अकादमी पुरस्कार
कृष्णा सोबती की भाषा-शैली :
भाषा-शैली- कृष्णा सोबती की भाषा शैली बहुत सहज, सरल, भावानुकूल तथा व्यावहारिक है। ‘मियाँ नसीरुद्दीन एक खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन का शब्द चित्र है। इसलिए इस की भाषा में उर्दू के शब्दों की अधिकता है, जैसे- लुफ, फरमाइए, अंदाज, खुराफ़ात, तकलीफ, वालिद, मरहूम, पेशा, बाबत, तालीम, जहमत आदि। कहीं-कहीं तो पूरा वाक्य ही उर्दू भाषा में है, जैसे- ‘कहने का मतलब साहिब यह कि तालीम की तालीम भी बड़ी चीज होती है।
‘मुहावरों के प्रयोग ने इन की भाषा में प्रभाव उत्पन्न कर दिया है, जैसे-‘मौसमों की मार से पका चेहरा, पेशानी पर मँजे हुए कारीगर के तेवर, वालिद मरहूम के उठ जाने पर आ बैठे उन्हीं के ठीये पर।’ इनकी शैली मुख्य रूप से वर्णन प्रधान है किंतु उस में चित्रात्मकता एवं संवादात्मकता के कारण रोचकता में वृद्धि हुई है। कहीं-कहीं काव्यात्मक शैली के भी दर्शन होते हैं, जैसे—’हम बर्तन धोना न सीखते, हम भट्टी बनाना न सीखते, भट्टी को आँच देना न सीखते, तो क्या हम सीधे-सीधे नानबाई का हुनर सीख जाते।’
इन की भाषा-शैली अत्यंत व्यावहारिक तथा रोचक है।
उनका जन्म 18 जनवरी, 1925 ई० को पाकिस्तान के गुजरात नामक स्थान पर हुआ था।
उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं: ‘जिंदगीनामा’, ‘समय सरगम’, ‘डार से बिछुड़ी’, और ‘बादलों के घेरे’।
उन्हें 2017 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, जो भारतीय साहित्य का सर्वोच्च सम्मान है।
कृष्णा सोबती की मृत्यु 25 जनवरी, 2019 ई० को हुई थी और उन्हें उस समय 94 वर्ष की उम्र थी।
उनकी अन्य प्रसिद्ध रचनाएँ हैं: ‘मैं झील का एक नगमा हूँ’, ‘नन्हे से घर का पत्ती’, ‘मेरी संजीवनी’, और ‘यह कविता’।
हां, वर्ष 2018 में उनके जीवन पर बनी ‘मैं नहीं देखती तुम्हें’ नामक फिल्म ने उन्हें यादगार ढंग से प्रस्तुत किया था।