विवरण | जानकारी |
---|---|
नाम | जन्म सन् 1929, लखनऊ (उत्तर प्रदेश) |
प्रमुख रचनाएँ | अज्ञेय द्वारा संपादित दूसरा सप्तक (1951) में, आरंभिक कविताएँ, महत्त्वपूर्ण काव्य-संकलन सीढ़ियों पर धूप में, आत्महत्या के विरुद्ध, हँसो हँसो जल्दी हँसो |
पत्रकारिता | ऑल इंडिया रेडियो के हिंदी समाचार विभाग से संबद्ध रहे, फिर हैदराबाद से निकलने वाली पत्रिका कल्पना और उसके बाद दैनिक नवभारत टाइम्स तथा दिनमान से संबद्ध रहे |
सम्मान | साहित्य अकादेमी पुरस्कार |
निधन | सन् 1990, दिल्ली में |
Table of Contents
रघुवीर सहाय का जीवन परिचय :
रघुवीर सहाय समकालीन हिन्दी काव्य के संवेदनशील कवि थे। उनका जन्म 1929 में लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उन्होंने 1951 में लखनऊ विश्वविद्यालय से एम.ए. अंग्रेजी की परीक्षा पास की। एम.ए. करने के बाद उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करना शुरू किया। उन्होंने ‘प्रतीक’, ‘वाक’ और ‘कल्पना’ सहित कई पत्रिकाओं के संपादकीय बोर्ड के सदस्य के रूप में काम किया। वे कुछ समय के लिए आकाशवाणी के हिन्दी समाचार विभाग से भी जुड़े रहे।
वे 1971 से 1982 तक प्रसिद्ध पत्रिका ‘दिनमान’ के सम्पादक रहे। ‘दूसरा सप्तक’ के प्रकाशन से उन्हें कवि के रूप में विशेष ख्याति प्राप्त हुई। रघुवीर सहाय (9 दिसम्बर, 1929 – 30 दिसम्बर, 1990) एक हिन्दी लेखक और पत्रकार थे। उनका जन्म लखनऊ में हुआ था। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. की उपाधि प्राप्त की।
उन्होंने 1946 में साहित्य लिखना शुरू किया और 1949 में दैनिक नवजीवन (लखनऊ) के साथ पत्रकारिता में अपना करियर शुरू किया। 1951 तक, वे एक सहायक संपादक और सांस्कृतिक संवाददाता थे। उसी वर्ष, वे दिल्ली चले गए, जहाँ उन्होंने प्रतीक (1951-52) के सहायक संपादक के रूप में और आकाशवाणी के हिंदी समाचार विभाग (1953-57) में सहायक संपादक के रूप में काम किया। 1955 में, उन्होंने विमलेश्वरी सहाय से शादी की।
रघुवीर सहाय ने समकालीन हिंदी कविता को एक कथात्मक और नाटकीय गुण प्रदान किया है। वह अपने समय की हिंदी कविता का एक संवेदनशील चेहरा हैं।
रघुवीर सहाय की काव्यगत विशेषताएँ :
रघुवीर सहाय समकालीन हिंदी कविता के संवेदनशील ‘नागर’ चेहरा हैं। सड़क, चौराहा, दफ़्तर, अखबार, संसद, बस, रेल और बाज़ार की बेलौस भाषा में उन्होंने कविता लिखी। घर – मुहल्ले के चरित्रों पर कविता लिखकर इन्हें हमारी चेतना का स्थायी नागरिक बनाया । हत्या – लूटपाट और आगजनी, राजनैतिक भ्रष्टाचार और छल – छद्म इनकी कविता में उतरकर खोजी पत्रकारिता की सनसनीखेज रपटें नहीं रह जाते, आत्मान्वेषण का माध्यम बन जाते हैं।
कुछ होगा / कुछ होगा अगर मैं बोलूगा /
न टूटे न टूटे तिलिस्म सत्ता का / मेरे अंदर एक कायर टूटेगा
यह ठीक है कि पेशे से वे पत्रकार थे, लेकिन वे सिर्फ पत्रकार ही नहीं, सिद्ध कथाकार और कवि भी थे। कविता को उन्होंने एक कहानीपन और एक नाटकीय वैभव दिया। जातीय या वैयक्तिक स्मृतियाँ उनके यहाँ नहीं के बराबर हैं। इसलिए उनके दोनों पाँव वर्तमान में ही गड़े हैं। बावजूद इसके, मार्मिक उजास और व्यंग्य-बुझी खुरदरी मुसकानों से उनकी कविता पटी पड़ी है। छंदानुशासन के लिहाज़ से भी वे अनुपम हैं पर ज्यादातर बातचीत की सहज शैली में ही उन्होंने लिखा और बखूबी लिखा।
बतौर पत्रकार और कवि घटनाओं में निहित विडंबना और त्रासदी को भी उन्होंने देखा । रघुवीर सहाय की कविताओं की दूसरी विशेषता है छोटे या लघु की महत्ता का स्वीकार । वे महज़ बड़े कहे जाने वाले विषयों या समस्याओं पर ही दृष्टि नहीं डालते, बल्कि जिनको समाज में हाशिए पर रखा जाता है, उनके अनुभवों को भी अपनी रचनाओं का विषय बनाते हैं। रघुवीर जी ने भारतीय समाज में ताकतवरों की बढ़ती हैसियत और सत्ता के खिलाफ़ भी साहित्य और पत्रकारिता के पाठकों का ध्यान खींचा। ‘रामदास’ नाम की उनकी कविता आधुनिक हिंदी कविता की एक महत्त्वपूर्ण रचना मानी जाती है।
रघुवीर सहाय की भाषा शैली :
रघुवीर सहाय जी एक सजग कलाकार और कवि हैं। उनकी भाषा में पैनी व्यंग्यात्मकता, सुगठित भाषा और आधुनिक हिंदी साहित्य में विशेष पहचान होती है। संवेदनशील कवि होने के साथ ही, उनकी भाषा भी संवेदनशीलता का अनुपम चित्रण करती है। उनकी भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है, जिसमें संस्कृत के तत्सम, तद्भव और विदेशी भाषाओं के शब्दों का भी समावेश है। उनकी कविताओं में मुहावरों के स्थान पर सीधी-सादी भाषा का प्रयोग किया गया है। उन्होंने अपने काव्य में व्यंग्यात्मकता और भावपूर्ण शैली का उत्कृष्ट प्रयोग किया है।
रघुवीर सहाय की प्रमुख रचनाएं :
शीर्षक | श्रेणी |
---|---|
दूसरा सप्तक | कविता संग्रह |
सीढ़ियों पर धूप में | कविता संग्रह |
आत्महत्या के विरुद्ध | कविता संग्रह |
हँसो हँसो जल्दी हँसो | कविता संग्रह |
रास्ता इधर से है | कहानी संग्रह |
दिल्ली मेरा परदेश और लिखने का कारण | निबंध संग्रह |
रघुवीर सहाय को पुरस्कार / सम्मान:
कविता संग्रह ‘लोग भूल गए हैं ‘ के लिए 1984 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित।