दामोदर हरि चापेकर का जीवनी | Damodar Hari Chapekar Biography in Hindi

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दामोदर हरि चापेकर का जीवन परिचय | Damodar Hari Chapekar History Biography, Birth, Education, Life, Death, Role in Independence in Hindi

जय हिन्द, मित्रों आज हम दामोदर हरी चापेकर का जीवन परिचय आपको बताने जा रहे है. दामोदर हरी चापेकर और उनके दोनों भाई बालकृष्ण चापेकर तथा वासुदेव चापेकर तीनों ने मातृभूमि को आज़ाद करने के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित करने वाले. इसलिए इन्हे संयुक्त रूप से ‘चापेकर बंधू’ से सम्बोधित किया जाता है. उनका भारत की आज़ादी में महत्वपूर्ण योगदान रहा है.

प्रारम्भिक जीवन | Damodar Hari Chapekar Early Life

नाम दामोदर हरी चापेकर
जन्मतिथि 24 जून, 1869
जन्मस्थान पुणे, महाराष्ट्र
पिता हरिपंत चापेकर
भाई बालकृष्ण चापेकर, वासुदेव चापेकर
नागरिकता भारतीय

Damodar Hari Chapekar Early Life

दामोदर हरी चापेकर का जन्म 24 जून, 1869 को महाराष्ट्र के पुणे में हुआ. उनके पिताजी का नाम हरिपंत चापेकर था. माता-पिता के वे ज्येष्ठ पुत्र थे. उन्हें दो भाई थे जिनका नाम बालकृष्ण चापेकर और वासुदेव चापेकर था. महाराष्ट्रियन संस्कृति में पले-बढे दामोदर बचपन से भजन-कीर्तनों में रूचि रखते थे. बचपन से उन्हें सैनिक बनकर देश की सेवा करने की इच्छा थी.

महर्षि पटवर्धन और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को वे अपना आदर्श मानते थे. दामोदर चापेकर और उनके भाई तिलक जी को गुरुवत सम्मान देते थे. बचपन से दामोदर जी को गायन के साथ काव्यपाठ और व्यायाम का भी बहुत शौक था. उनके घर में लोकमान्य तिलक का ‘केसरी’ नामक समाचार पत्र आता था. यह समाचार पात्र दामोदर जी के घर में और अड़ोस पड़ोस के सब लोग पढ़ा करते थे.

सन 1897 में पुणे नगर प्लेग की भयानक बिमारी के जपेट में था. सरकार ने पुणे वासियों को पुणे छोड़ने की आज्ञा दी, जिससे लोगों में बड़ी अशांति पैदा हो गई. लोगो ने शहर न छोड़ने पर सरकार ने खुप दबाव डालना शुरू किया. इसमें अंग्रेज़ अधिकारी वाल्टर चार्ल्स रैण्ड और आयर्स्ट बड़ा सहयोग था. लोगों पर खुप अत्याचार होने लगे थे. इसका तिलक और आगरकर जी ने खुप विरोध किया. परिणामतः उन्हें जेल भेजा गया. इस घटना से दामोदर चापेकर के मन में अंग्रेजो की हुकमी सरकार के विरुद्ध द्वेष पैदा हुआ.

स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान | Damodar Hari Chapekar Contribution

प्लेग के बीमारी के दौरान एक दिन तिलक जी ने चाफेकर बन्धुओं से कहा, “शिवाजी ने अपने समय में अत्याचार का विरोध किया था, किन्तु इस समय अंग्रेजों के अत्याचार के विरोध में तुम लोग क्या कर रहे हो?”. यह सुनकर चापेकर बंधुओं को बहुत बुरा लगा और इसके बाद इन तीनों भाइयों ने क्रान्ति का मार्ग अपना लिया.

22 जून 1897 को पुणे के “गवर्नमेन्ट हाउस’ में एक कार्यक्रम मनाया जाने वाला था. दामोदर चापेकर और उनके भाई बालकृष्ण चापेकर भी एक दोस्त विनायक रानडे के साथ वहां पहुंच गए और अंग्रेज अधिकारियों के निकलने की प्रतीक्षा करने लगे. रात में 12 बजकर 10 मिनट पर अंग्रेज़ अधिकारी रैण्ड और आयर्स्ट निकले और अपनी-अपनी बग्घी पर सवार होकर चल पड़े. योजना के अनुसार दामोदर हरि चाफेकर रैण्ड की बग्घी के पीछे चढ़ गए और उसे गोली मार दी. और बालकृष्ण जी ने भी आर्यस्ट पर गोली चला दी. इसके बाद पुणे में चापेकर बंधुओ की जयजयकार हुई.

इस घटना के बाद दामोदर चापेकर, उनके भाई बालकृष्ण और दोस्त विनायक रानडे फरार हो गए. उन्हें ढूंढ़ने केलिए अंग्रेज सरकार ब्रुइन द्वारा २० हजार रुपए का इनाम रखा गया. चापेकर बंधू की इस तरतूद को जानने वाले और दो लोग थे शंकर द्रविड़ और रामचन्द्र द्रविड़. इन्होने लालच में आकर ब्रुइन को लापता चापेकर का सुराग दिया. इसके बाद दामोदर चापेकर को पकड़ लिया गया लेकिन, उनके भाई बालकृष्ण चापेकर पुलिस के हाथ नहीं लगे. कोर्ट ने उन्हें मृत्युदंड की सजा सुनवाई. कारागृह में तिलक जी ने उनसे भेंट की और उन्हें “गीता’ प्रदान की. और 18 अप्रैल 1898 को “गीता” पढ़ते पढ़ते दामोदर जी फांसीघर पहुंचे और फांसी के फंदे से जा लटके. इसके बाद उनके भाई बालकृष्ण चापेकर खुद पुलिस के पास गए और गिरफ्तार हो गए.

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