छत्रपति शिवाजी महाराज एक भारतीय शासक थे, जिन्होंने मराठा साम्राज्य खड़ा किया था। वे बहुत बहादुर, बुद्धिमानी, शौर्य और दयालु शासक थे। शिवाजी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, उन्होंने भारत देश के निर्माण के लिए बहुत से कार्य किये, वे एक महान देशभक्त भी थे, जो भारत माता के लिए अपना जीवन तक न्योछावर करने को तैयार थे।
छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम भारत का हर एक व्यक्ति जानता है। शिवाजी महाराज का व्यक्तिव इतना प्रभावशाली था की उनके व्यक्तित्व की छाया में देश का गौरव शाली इतिहास बना। छत्रपति शिवाजी भोसले (1630-1680 ई.) भारत के एक महान राजा एवं रणनीतिकार थे जिन्होंने 1674 ई. में पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी। इसके लिए उन्होंने मुगल साम्राज्य के शासक औरंगज़ेब से संघर्ष किया। सन् 1674 में रायगढ़ में उनका राज्याभिषेक हुआ और वह “छत्रपति” बने। छत्रपती शिवाजी महाराज ने अपनी अनुशासित सेना एवं सुसंगठित प्रशासनिक इकाइयों कि सहायता से एक योग्य एवं प्रगतिशील प्रशासन प्रदान किया। उन्होंने समर-विद्या में अनेक नवाचार किए तथा छापामार युद्ध की नयी शैली (शिवसूत्र) विकसित की।
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बिंदु | जानकारी |
नाम | छत्रपति शिवाजी भोसले |
जन्म | 19 फरवरी 1630 शिवनेरी दुर्ग |
पिता का नाम | शाहजी |
माता का नाम | जीजाबाई |
संतान | सम्भाजी, राजाराम, राणुबाई आदि. |
घराना | भोसले |
निधन | 3 अप्रैल 1680 रायगढ़ |
समाधि | रायगढ़ |
छत्रपति शिवाजी महाराज का आरम्भिक जीवन:
शिवाजी का जन्म 19 फरवरी, 1630 को शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। उनके पिता शाहजी भोंसले एक शक्तिशाली सामंत थे। उनकी माता जीजाबाई जाधव कुल में उत्पन्न असाधारण प्रतिभाशाली महिला थी। शिवाजी के बड़े भाई का नाम सम्भाजी था जो अधिकतर समय अपने पिता शाहजी भोसलें के साथ ही रहते थे। शाहजी राजे कि दूसरी पत्नी तुकाबाई मोहिते थीं। उनसे एक पुत्र हुआ जिसका नाम एकोजी राजे था।
शिवाजी महाराज के चरित्र पर माता-पिता का बहुत प्रभाव पड़ा। उनका बचपन उनकी माता के मार्गदर्शन में बीता। उन्होंने राजनीति एवं युद्ध की शिक्षा ली थी। वे उस युग के वातावरण और घटनाओं को भली प्रकार समझने लगे थे। उनके हृदय में स्वाधीनता की लौ प्रज्ज्वलित हो गयी थी। उन्होंने कुछ स्वामिभक्त साथियों का संगठन किया।
छत्रपति शिवाजी महाराज का वैवाहिक जीवन:
शिवाजी का विवाह सन् 14 मई 1640 में सइबाई निंबाळकर के साथ लाल महल, पुणे में हुआ था। उन्होंने कुल 8 विवाह किए थे। वैवाहिक राजनीति के जरिए उन्होंने सभी मराठा सरदारों को एक छत्र के नीचे लाने में सफलता प्राप्त की। शिवाजी की पत्नियाँ:
सखुबाई राणूबाई (अम्बिकाबाई); सोयराबाई मोहिते – (बच्चे- दीपबै, राजाराम); पुतळाबाई पालकर (1653-1680), गुणवन्ताबाई इंगले; सगुणाबाई शिर्के, काशीबाई जाधव, लक्ष्मीबाई विचारे, सकवारबाई गायकवाड़ – (कमलाबाई) (1656-1680)।
छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक:
सन् १६७४ तक शिवाजी ने उन सारे प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था जो पुरन्दर की सन्धि के अन्तर्गत उन्हें मुग़लों को देने पड़े थे। पश्चिमी महाराष्ट्र में स्वतंत्र हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के बाद शिवाजी ने अपना राज्याभिषेक करना चाहा, परन्तु मुस्लिम सैनिको ने ब्राहमणों को धमकी दी कि जो भी शिवाजी का राज्याभिषेक करेगा उनकी हत्या कर दी जायेगी। जब ये बात शिवाजी तक पहुंची की मुगल सरदार ऐसे धमकी दे रहे है तब शिवाजी ने इसे एक चुनौती के रुप मे लिया और कहा की अब वो उस राज्य के ब्राह्मण से ही अभिषेक करवायेंगे जो मुगलों के अधिकार में है।
शिवाजी के निजी सचिव बालाजी जी ने काशी में तीन दूतो को भेजा, क्युंकि काशी मुगल साम्राज्य के अधीन था। जब दूतों ने संदेश दिया तो काशी के ब्राह्मण काफी प्रसन्न हुये। किंतु मुगल सैनिको को यह बात पता चल गई तब उन ब्राह्मणों को पकड लिया। परंतु युक्ति पूर्वक उन ब्राह्मणों ने मुगल सैंनिको के समक्ष उन दूतों से कहा कि शिवाजी कौन है हम नहीं जानते है. वे किस वंश से हैं ? दूतों को पता नहीं था इसलिये उन्होंने कहा हमें पता नहीं है। तब मुगल सैनिको के सरदार के समक्ष उन ब्राह्मणों ने कहा कि हमें कहीं अन्यत्र जाना है, शिवाजी किस वंश से हैं आपने नहीं बताया अत: ऐसे में हम उनके राज्याभिषेक कैसेकर सकते हैं. हम तो तीर्थ यात्रा पर जा रहे हैं और काशीका कोई अन्य ब्राह्मण भी राज्याभिषेक नहीं करेगा जब तक राजा का पूर्ण परिचय न हो अत: आप वापस जा सकते हैं। मुगल सरदार ने खुश होके ब्राह्मणो को छोड दिया और दूतो को पकड कर औरंगजेब के पास दिल्ली भेजने की सोची पर वो भी चुप के से निकल भागे।
वापस लौट कर उन्होने ये बात बालाजी आव तथा शिवाजी को बताई. परंतु आश्चर्यजनक रूप से दो दिन बाद वही ब्राह्मण अपने शिष्यों के साथ रायगढ पहुचें ओर शिवाजी का राज्याभिषेक किया। इसके बाद मुगलों ने फूट डालने की कोशिश की और शिवाजी के राज्याभिषेक के बाद भी पुणे के ब्राह्मणों को धमकी दी कहा कि शिवाजी को राजा मानने से मना करो. ताकि प्रजा भी इसे न माने !! लेकिन उनकी नहीं चली. शिवाजी ने अष्टप्रधान मंडल की स्थापना की. विभिन्न राज्यों के दूतों, प्रतिनिधियों के अलावा विदेशी व्यापारियों को भी इस समारोह में आमंत्रित किया गया। पर उनके राज्याभिषेक के 12 दिन बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया था इस कारण से 4 अक्टूबर 1674 को दूसरी बार शिवाजी ने छत्रपति की उपाधि ग्रहण की। दो बार हुए इस समारोह में लगभग 50 लाख रुपये खर्च हुए। इस समारोह में हिन्दवी स्वराज की स्थापना का उद्घोष किया गया था। विजयनगर के पतन के बाद दक्षिण में यह पहला हिन्दू साम्राज्य था। एक स्वतंत्र शासक की तरह उन्होंने अपने नाम का सिक्का चलवाया। इसके बाद बीजापुर के सुल्तान ने कोंकण विजय के लिए अपने दो सेनाधीशों को शिवाजी के विरुद्ध भेजा पर वे असफल रहे।
छत्रपति शिवाजी महाराज का शासन और व्यक्तित्व:
शिवाजी को एक कुशल और प्रबुद्ध सम्राट के रूप में जाना जाता है। यद्यपि उनको अपने बचपन में पारम्परिक शिक्षा कुछ खास नहीं मिली थी, पर वे भारतीय इतिहास और राजनीति से सुपरिचित थे। उन्होंने शुक्राचार्य तथा कौटिल्य को आदर्श मानकर कूटनीति का सहारा लेना कई बार उचित समझा था। अपने समकालीन मुगलों की तरह वह भी निरंकुश शासक थे, अर्थात शासन की समूची बागडोर राजा के हाथ में ही थी। पर उनके प्रशासकीय कार्यों में मदद के लिए आठ मंत्रियों की एक परिषद थी जिन्हें अष्टप्रधान कहा जाता था। इसमें मंत्रियों के प्रधान को पेशवा कहते थे जो राजा के बाद सबसे प्रमुख हस्ती था। अमात्य वित्त और राजस्व के कार्यों को देखता था तो मंत्री राजा की व्यक्तिगत दैनन्दिनी का खयाल रखाता था। सचिव दफ़तरी काम करते थे जिसमे शाही मुहर लगाना और सन्धि पत्रों का आलेख तैयार करना शामिल होते थे। सुमन्त विदेश मंत्री था। सेना के प्रधान को सेनापति कहते थे। दान और धार्मिक मामलों के प्रमुख को पण्डितराव कहते थे। न्यायाधीश न्यायिक मामलों का प्रधान था।
मराठा साम्राज्य तीन या चार विभागों में विभक्त था। प्रत्येक प्रान्त में एक सूबेदार था जिसे प्रान्तपति कहा जाता था। हरेक सूबेदार के पास भी एक अष्टप्रधान समिति होती थी। कुछ प्रान्त केवल करदाता थे और प्रशासन के मामले में स्वतंत्र। न्यायव्यवस्था प्राचीन पद्धति पर आधारित थी। शुक्राचार्य, कौटिल्य और हिन्दू धर्मशास्त्रों को आधार मानकर निर्णय दिया जाता था। गांव के पटेल फौजदारी मुकदमों की जांच करते थे। राज्य की आय का साधन भूमि से प्राप्त होने वाला कर था पर चौथ और सरदेशमुखी से भी राजस्व वसूला जाता था। ‘चौथ’ पड़ोसी राज्यों की सुरक्षा की गारंटी के लिए वसूले जाने वाला कर था। शिवाजी अपने को मराठों का सरदेशमुख कहते थे और इसी हैसियत से सरदेशमुखी कर वसूला जाता था।
राज्याभिषेक के बाद उन्होंने अपने एक मंत्री (रामचन्द्र अमात्य) को शासकीय उपयोग में आने वाले फारसी शब्दों के लिये उपयुक्त संस्कृत शब्द निर्मित करने का कार्य सौंपा। रामचन्द्र अमात्य ने धुन्धिराज नामक विद्वान की सहायता से ‘राज्यव्यवहारकोश’ नामक ग्रन्थ निर्मित किया। इस कोश में १३८० फारसी के प्रशासनिक शब्दों के तुल्य संस्कृत शब्द थे। इसमें रामचन्द्र ने लिखा है-
कृते म्लेच्छोच्छेदे भुवि निरवशेषं रविकुला-
वतंसेनात्यर्थं यवनवचनैर्लुप्तसरणीम्।
नृपव्याहारार्थं स तु विबुधभाषां वितनितुम्।
नियुक्तोऽभूद्विद्वान्नृपवर शिवच्छत्रपतिना ॥८१॥
मृत्यु और उत्तराधिकार:
विष दिलाने के बाद शिवाजी महाराज की मृत्यु 3 अप्रैल 1680 में हुई। उस समय शिवाजी के उत्तराधिकार संभाजी को मिले। शिवाजी के ज्येष्ठ पुत्र संभाजी थे और दूसरी पत्नी से राजाराम नाम एक दूसरा पुत्र था। उस समय राजाराम की उम्र मात्र 10 वर्ष थी अतः मराठों ने शम्भाजी को राजा मान लिया। उस समय औरंगजेब राजा शिवाजी का देहान्त देखकर अपनी पूरे भारत पर राज्य करने कि अभिलाषा से अपनी 5,00,000 सेना सागर लेकर दक्षिण भारत जीतने निकला।
औरंगजेब ने दक्षिण में आते ही अदिल्शाही २ दिनो में और कुतुबशाही १ ही दिनो में खतम कर दी। पर राजा सम्भाजी के नेतृत्व में मराठाओ ने ९ साल युद्ध करते हुये अपनी स्वतन्त्रता बरकरार रखी। औरंगजेब के पुत्र शहजादा अकबर ने औरंगजेब के ख़िलाफ़ विद्रोह कर दिया। संभाजी ने उसको अपने यहाँ शरण दी। औरंगजेब ने अब फिर जोरदार तरीके से संभाजी के ख़िलाफ़ आक्रमण करना शुरु किया। उसने अन्ततः 1689 में संभाजी के बीवी के सगे भाई याने गणोजी शिर्के की मुखबरी से संभाजी को मुकरव खाँ द्वारा बन्दी बना लिया।
औरंगजेब ने राजा संभाजी से बदसलूकी की और बुरा हाल कर के मार दिया। अपनी राजा कि औरंगजेब द्वारा की गई बदसलूूूकी और नृृृृृृशंसता द्वारा मारा हुआ देखकर पूरा मराठा स्वराज्य क्रोधित हुआ। उन्होने अपनी पुरी ताकत से राजाराम के नेतृत्व में मुगलों से संघर्ष जारी रखा। 1700 इस्वी में राजाराम की मृत्यु हो गई। उसके बाद राजाराम की पत्नी ताराबाई 4 वर्षीय पुत्र शिवाजी द्वितीय की संरक्षिका बनकर राज करती रही। आखिरकार 25 साल मराठा स्वराज्य के युद्ध लड के थके हुये औरंगजेब की उसी छ्त्रपती शिवाजी के स्वराज्य में दफन हुये।