जन्म | 13 जनवरी, सन् 1911 |
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जन्म स्थान | देहरादून (उत्तर प्रदेश अब उत्तराखंड में) |
प्रकाशित रचनाएँ | कुछ कविताएँ, कुछ और कविताएँ, चुका भी हूँ नहीं मैं, इतने पास अपने, बात बोलेगी, काल तुझसे होड़ है मेरी, ‘उर्दू-हिंदी कोश’ का संपादन |
सम्मान | ‘साहित्य अकादेमी’ तथा ‘कबीर सम्मान’ सहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित |
निधन | सन् 1993, अहमदाबाद में |
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शमशेर बहादुर सिंह का जीवन परिचय :
शमशेर का जन्म 13 जनवरी, 1911 को देहरादून के एक सम्मानित जाट परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम तारिफ सिंह और माता का नाम प्रभुदायिनी था। उनका एक छोटा भाई था जिसका नाम तेज बहादुर था। शमशेर लगभग 8-9 साल का था जब उसकी माँ की मृत्यु हो गई, लेकिन वह और उसका भाई इलाहाबाद में ही रहे। मार्ग में यह भी उल्लेख है कि शमशेर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा उर्दू में प्राप्त की थी और बाद में हिंदी और फारसी में भी उनका परिचय हुआ।
उन्होंने देहरादून में हाई स्कूल में पढ़ाई की और अपनी इंटरमीडिएट की परीक्षा गोंडा, उत्तर प्रदेश में पास की। 1933 में, उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए पूरा किया और 1938 में उसी विश्वविद्यालय में एमए पूरा करने चले गए। हालाँकि, वे किसी कारण से अपनी अंतिम परीक्षा पूरी नहीं कर सके। 1935-36 में उन्होंने उकील ब्रदर्स से कला का प्रशिक्षण प्राप्त किया।
1929 में, उन्होंने 18 साल की उम्र में धर्मवती से शादी की, लेकिन छह साल बाद तपेदिक के कारण उनकी मृत्यु हो गई। सिंह हमेशा अपनी पत्नी की अनुपस्थिति को अपने साथ रखते थे और अपनी भावनाओं को अपनी कविता के माध्यम से व्यक्त करते थे। युवावस्था में वे वामपंथी विचारधारा और प्रगतिशील साहित्य से प्रभावित थे। सिंह एक मध्यवर्गीय जीवन जीते थे।
तुमने ‘धरती’ का पथ पड़ा है? उसकी सहजता प्राण है।
शमशेर बहादुर सिंह की काव्य भाषा :
शमशेर बहादुर सिंह एक हिंदी और उर्दू कवि थे जिन्होंने अपनी रचनाओं में संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी और फारसी सहित कई भाषाओं का इस्तेमाल किया। उन्होंने अपनी कविताओं में संज्ञा और विशेषणों की अपेक्षा सर्वनामों, क्रियाओं और मुहावरों को अधिक महत्व दिया है। खुद को उर्दू और हिंदी का दोआब मानने वाले शमशेर की कविता एक संधिस्थल पर खड़ी है। यह संधि एक ओर साहित्य, चित्रकला और संगीत की है तो दूसरी ओर मूर्तता और अमूर्तता की तथा एंद्रिय और ऐद्रियेतर की है।
शमशेर की कविता: विचारों और कलाकृतियों का संगम :
विचारों के स्तर पर प्रगतिशील और शिल्प के स्तर पर प्रयोगधर्मी कवि शमशेर की पहचान एक विधर्मी कवि के रूप में है। उनकी यह बिंबधर्मिता शब्दों से रंग, रेखा, स्वर और कृची की अद्भुत कशीदाकारी का माद्दा रखती है। उनका चित्रकार मन कलाओं के बीच की दूरी को न केवल पाटता है, बल्कि भाषातीत हो जाना चाहता है। उनकी मूल चिंता माध्यम का उपयोग करते हुए भी बंधन से परे जाने की है।
ओ माध्यम! क्षमा करना
कि मैं तुम्हारे पार जाना चाहता हूँ।
कथा और शिल्प दोनों ही स्तरों पर उनकी कविता का मिजाज अलग है। उर्दू शायरी के प्रभाव से संज्ञा और विशेषण से अधिक बल सर्वनामों, क्रियाओं, अव्ययों और मुहावरों को दिया है। उन्होंने खुद भी कुछ अच्छे शेर कहे हैं।
सचेत इंद्रियों का यह कवि जब प्रेम, पीड़ा, संघर्ष और सृजन को गूंथकर कविता का महल बनाता है तो वह ठोस तो होता ही है अनुगूँजों से भी भरा होता है। वह पाठक को न केवल पढ़े जाने के लिए आमंत्रित करती है, बल्कि सुनने और देखने को भी।
शमशेर बहादुर सिंह की प्रमुख रचनाएं :
गद्य रचनाएं :
संख्या | नाम |
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1 | ‘दोआब’ निबंध- संग्रह (1948) |
2 | ‘प्लाट का मोर्चा’ कहानियां व स्केच (1952) |
3 | ‘शमशेर की डायरी।’ |
4 | अनुवाद |
5 | सरशार के उर्दू उपन्यास ‘कामिनी’ |
6 | ‘हुशू’ |
7 | ‘पी कहां।’ |
8 | एज़ाज़ हुसैन द्वारा लिखित उर्दू साहित्य का इतिहास |
9 | ‘षडयंत्र’ (सोवियत संघ-विरोधी गतिविधियों का इतिहास) |
10 | ‘वान्दावासिलवास्का’ (रूसी) के उपन्यास ‘पृथ्वी और आकाश’ |
11 | ‘आश्चर्य लोक में एलिस’। |
काव्य-कृतियां:
संख्या | नाम |
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1 | ‘कुछ कविताएं’ (1956) |
2 | ‘कुछ और कविताएं’ (1961) |
3 | ‘शमशेर बहादुर सिंह की कविताएं’ (1972) |
4 | ‘इतने पास अपने’ (1980) |
5 | ‘उदिता : अभिव्यक्ति का संघर्ष’ (1980) |
6 | ‘चुका भी हूं नहीं मैं’ (1981) |
7 | ‘बात बोलेगी’ (1981) |
8 | ‘काल तुझसे होड़ है मेरी’ (1988) |
9 | ‘शमशेर की ग़ज़लें |
शमशेर पर केन्द्रित विशिष्ट साहित्य :
सामग्री | संपादक/लेखक | प्रकाशन दिनांक |
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शमशेर पर केन्द्रित विशिष्ट साहित्य आलोचना (पत्रिका) | अरुण कमल | जनवरी-मार्च २०११ |
एक शमशेर भी है -२०११ | दूधनाथ सिंह | नवीन शाहदरा, दिल्ली से प्रकाशित |
समझ भी पाता तुम्हें यदि मैं (शमशेर की तेरह कविताओं पर एकाग्र) -२०१२ | मदन सोनी | मेधा बुक्स, नवीन शाहदरा, दिल्ली से प्रकाशित |
स्मरण में है जीवन : शमशेर बहादुर सिंह | यश पब्लिकेशंस | नवीन शाहदरा, दिल्ली से प्रकाशित |
शमशेर की आलोचना दृष्टि -२०११ | गजेन्द्र पाठक | सामयिक प्रकाशन, नयी दिल्ली से प्रकाशित |
शमशेर बहादुर सिंह की आलोचना-दृष्टि – २०१९ | निर्भय कुमार | लोकभारती प्रकाशन, प्रयागराज से प्रकाशित |
शमशेर बहादुर सिंह को पुरस्कार / सम्मान:
- साहित्य अकादमी पुरस्कार “चुका भी हूँ नहीं मैं” के लिये – १९७७
- ‘मैथिली शरण गुप्त पुरस्कार’ (मध्यप्रदेश सरकार) – १९८७
- ‘कबीर सम्मान’ (मध्यप्रदेश सरकार) – १९८९
शमशेर सिंह: जीवन की कहानी और संघर्ष :
शमशेर के जीवन का बहुत बड़ा भाग अभाव से भरा रहा था। उनके भाई तेज बहादुर के शब्दों में, जो भी इच्छा जगी उसी का अभाव सामने आ जाता था। कपड़ों का अभाव, खाने का अभाव, धन-दौलत का अभाव, भूख-प्यास साहित्य सुभट ने सभी कुछ झेला।
उनके जीवन में कुछ हितैषी भी सामने आए, जैसे कि उनके मामा श्री लक्ष्मीचंद जी और सुप्रसिद्ध कवि त्रिलोचन शास्त्री जैसे लोगों ने उनकी सहायता की। उनके उत्तरकाल में, उनकी सारी जिम्मेदारियाँ डॉ॰ रंजना अरगड़े ने संभालीं। उनकी पूरी देखभाल, तीमारदारी उन्होंने ही की और परिवार के बाहर की होकर भी परिवार के सारे रिश्ते उन्होंने अकेले निभाए।
शमशेर की मृत्यु 12 मई 1993 को अहमदाबाद में डॉ॰ रंजना अरगड़े के निवास में हुई।
शमशेर बहादुर सिंह
12 मई 1993
शमशेर बहादुर सिंह एक हिंदी और उर्दू कवि थे जिन्होंने अपनी रचनाओं में संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी और फारसी सहित कई भाषाओं का इस्तेमाल किया।
शमशेर बहादुर सिंह की पत्नी धर्मवती थीं, जिनकी शादी के छह साल बाद तपेदिक के कारण मृत्यु हो गई थी।