Contents
- 1 शिवराम राजगुरु का की जीवनी, शिक्षा, राष्ट्रीय आंदोलन | Shivram Rajguru Biography, Education, Role in Independence activities in Hindi
- 2 Table of contents
- 3 प्रार्थमिक जीवन | Shivram Rajguru Early Life
- 4 जीवन सफ़र | Shivram Rajguru Life Journey
- 5 रणनीति | Shivram Rajguru Strategy
- 6 निधन | Shivram Rajguru Death
शिवराम राजगुरु का की जीवनी, शिक्षा, राष्ट्रीय आंदोलन | Shivram Rajguru Biography, Education, Role in Independence activities in Hindi
मित्रों, आज इस लेख के माध्यम से हम जानेंगे शिवराम राजगुरु के जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण कड़िया, उनकी जीवन यात्रा और एक महान क्रांतिकारी के रूप में उनका योगदान. तो फिर चलिए शुरुआत करते है –
Table of contents
प्रार्थमिक जीवन | Shivram Rajguru Early Life
बिंदु (Points) | जानकारी (Information) |
नाम | शिवराम राजगुरु |
वास्तविक नाम | शिवराम हरि राजगुरु |
जन्मतिथि | 24 अगस्त 1908 |
जन्मस्थान | खेड़, बॉम्बे प्रेसीडेंसी, भारत |
पिता | श्री हरि नारायण |
माता | पार्वती बाई |
भाई | दिनकर |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
धर्म | हिन्दू |
Shivram Rajguru Early Life
शिवराम राजगुरु का जन्म 24 अगस्त 1908 को पुणे जिला के खेडा गाँव में हुआ था. इनके पिता का नाम श्री हरि नारायण और माता का नाम पार्वती बाई था. इनके बड़े भाई का नाम दिनकर था. इनकी महज छह साल की उम्र में इनके पिताजी का निधन हो गया था.
उन्होंने अपने गांव के ही एक मराठी स्कूल में प्रार्थमिक पढाई पूरी की. कुछ साल गांव में बिताने के बाद वे वाराणसी आ गए और इन्होंने विद्यानयन तथा संस्कृत विषय की पढ़ाई की. 15 वर्ष की आयु में राजगुरु जी को हिन्दू धर्म के ग्रंथो का अच्छा खासा ज्ञान हासिल हो गया था. और आपको बता दें, इन्होने सिद्धान्तकौमुदी को बहुत कम समय में याद कर लिया था.
बचपन से ही वह अंग्रेज़ो की हुकूमत के खिलाफ थे, क्योकि बचपन से, समाज में चल रहे अंग्रेजों के जुल्म को उन्होंने अपनी आंखों के सामने होते देखा था. इसका किशोरावस्था पर खुप प्रभाव पड़ा था. वह अपने देश को स्वतंत्र होते देखना चाहते थे, इसलिए उन्होंने वर्ष 1924 में मात्र 16 साल की उम्र में वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी में दाखिला ले लिया.
जीवन सफ़र | Shivram Rajguru Life Journey
हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी के सदस्य के रूप में राजगुरु जी ने पंजाब, आगरा, लाहौर जैसे बड़े शहरों में जाकर स्थायिक लोगों को इस आर्मी से जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य निभाया.
1928 में ब्रिटिश इंडिया ने भारत में राजनीतिक सुधारों के मुद्दे पर गौर करने के लिए ‘साइमन कमीशन’ नियुक्त किया था. लेकिन, इस आयोग में किसी भी भारतीय को शामिल नहीं किया गया था. जिस वजह से इस आयोग केलिए भारतीयों के तरफ से काफ़ी बहिष्कार किया गया था. इस बहिष्कार के दौरान हुई लाठी मार में लाला लाजपत राय जी का निधन हो गया था. लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने केलिए राजगुरु, भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद ने एक रणनीति रची थी. इस रणनीति के अनुसार इन्होने पुलिस अधीक्षक जेम्स ए स्कॉट को मारने की साजिश रची हुई थी.
रणनीति | Shivram Rajguru Strategy
इस रणनीति को मुमकिन करने केलिए 17 दिसंबर 1928 का दिन चुना गया. उनके साथियों में सिर्फ जय गोपाल स्कॉट को जानते थे, इसलिए उन्हें ही स्कॉट की पहचान करनी थी. रणनीति के मुताबिक 17 दिसंबर को राजगुरु, भगत सिंह सह कुछ क्रांतिकारी लाहौर के जिला पुलिस मुख्यालय पहुंचे और स्कॉट का इंतजार कर रहे थे. थोड़ी ही देर बाद जय गोपाल ने एक पुलिस अफसर की और इशारा करते हुए इन्हें बताया की वह स्टॉक हैं और निशाना साध कर इन्होने गोलिया चलाकर इस पुलिस अफसर की हत्या कर दी. लेकिन, जिस व्यक्ति की ह्त्या कर दी गयी थी, वे स्कॉट नहीं थे, बल्कि जॉन पी सॉन्डर्स थे जो एक सहायक आयुक्त थे. इसके बाद, हत्यारे को ढूंढ़ने केलिए अंग्रेज़ो ने कवायद शुरू कर दी.
अंग्रेज़ो से बचने केलिए भगत सिंह और राजगुरु ने लाहौर छोड़ने का निश्चय किया. भगत सिंह और राजगुरु ने अपना वेश पूरी तरह से बदल दिया था. उसके बाद वे दुर्गा देवी वोहरा और उनके बच्चे के साथ ट्रेन में सवार हो गए. दुर्गा देवी वोहरा जी क्रांतिकारी भगवती चरन की पत्नी थी. राजगुरु लखनऊ में उतर गए और भगत सिंह वोहरा और उनके बच्चे के साथ हावड़ा केलिए निकल गए.
उत्तर प्रदेश में कुछ समय बिताने के बाद राजगुरु नागपुर, महाराष्ट्र चले गए और यह उन्होंने एक आरएसएस के एक कार्यकर्ता के घर में आश्रय लिया था. 30 सितम्बर 1929 को वे नागपुर से पुणे केलिए रवाना हो गए, इस बिच रास्ते में अंग्रेज़ो ने इन्हे पकड़ लिया. कुछ समय बाद इनके साथी जिनमें भगत सिंह, सुखदेव मौजूद थे, उन्हें भी पकड़ा गया और गिरफ्तार किया गया.
निधन | Shivram Rajguru Death
17 दिसंबर 1928 को की गयी सॉन्डर्स की हत्या में राजगुरु दोषी साबित हुए. इनके साथ भगत सिंह और सुखदेव भी दोषी साबित हुए थे. इस जुल्म में तीनों क्रांतिकारिओं को मृत्युदंड की सजा सुनाई गयी, जिसके तहत 1931 में 23 मार्च को तीनों को फांसी दे दी गयी थी. महज 22 साल की उम्र में राजगुरु जी का निधन हो गया. इस तरह भारत माता ने एक साथ अपने तीन पुत्रों को खो दिया.