रामवृक्ष बेनीपुरी का जीवन परिचय ।Ramvriksha Benipuri Biography

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रामवृक्ष बेनीपुरी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक सक्रिय सेनानी और हिंदी साहित्य के महान लेखकों में से एक माने जाते हैं। इन्होने नाटक, कहानी, निबंध, आलोचना, उपन्यास, संस्मरण, रेखाचित्र आदि सभी लेखन की विधाओं में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है। इनको रेखाचित्र लेखन विधा को हिंदी साहित्य में प्रमुख स्थान दिलाने का श्रेय जाता है।

संक्षिप्त जीवनपरिचय:

  • पूरा नाम: रामवृक्ष बेनीपुरी
  • जन्म: 23 दिसम्बर, 1899
  • जन्मस्थान: मुज़फ़्फ़रपुर, बिहार
  • मृत्यु: 9 सितम्बर, 1968
  • मृत्युस्थान: बिहार
  • कर्मभूमि: भारत
  • कर्म-क्षेत्र: साहित्य, राजनीति, स्वतंत्रता सेनानी
  • प्रसिद्धि: स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार, साहित्यकार, नाटककार, कहानीकार, निबन्धकार, उपन्यासकार, उत्कृष्ट रेखाचित्र लेखक।
  • नागरिकता: भारतीय
  • अन्य जानकारी: रामवृक्ष बेनीपुरी जी 1957 में बिहार विधान सभा के सदस्य चुने गए थे। सादा जीवन और उच्च विचार के आदर्श पर चलते हुए इन्होंने साहित्य साधना के साथ-साथ समाज सेवा के क्षेत्र में भी अद्भुत काम किया था।

जीवन परिचय:

रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म सन 1902 में बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर गांव में हुआ था। इनके पिता श्री कुलवंत सिंह एक साधारण किसान थे। बचपन में ही इनके माता-पिता का देहांत हो गया था और उनका लालन-पालन इनकी मौसी की देखरेख में हुआ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा बेनीपुर में ही हुई। बाद में इनकी शिक्षा इनके ननिहाल में भी हुई।

मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने से पूर्व ही सन 1920 में इन्होंने अध्ययन छोड़ दिया और महात्मा गांधी के नेतृत्व में प्रारंभ हुए असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। बाद में इन्होंने हिंदी साहित्य सम्मेलन से विशारद की परीक्षा उत्तीर्ण की। यह राष्ट्र सेवा के साथ-साथ साहित्य की भी साधना करते रहे। साहित्य की तरफ इनकी रूचि रामचरितमानस के अध्ययन से जागृत हुई। 15 वर्ष की आयु से ही ये पत्र-पत्रिकाओं में लिखने लगे थे। देश सेवा की ललक और भारतीय स्वतत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी के परिणाम स्वरुप इनको अनेक वर्षों तक जेल की यातनाएं भी सहनी पड़ी। सन 1968 ईस्वी में इनका देहांत हो गया।

बेनीपुरी जी के निबंध संस्मरणात्मक और भावात्मक है। भावुक हृदय के तीव्र उच्छवास की छाया इनके प्राय: सभी निबंधों में विद्यमान है।इन्होंने जो कुछ लिखा है, वह स्वतंत्र भाव से लिखा है। ये एक राजनीतिक और सामाजिक व्यक्ति थे। विधान सभा सम्मेलन, किसान सभा, राष्ट्रीय आंदोलन, विदेश यात्रा, भाषा आंदोलन, आदि के बीच में रमे रहते हुए भी इनका साहित्यकार व्यक्तित्व हिंदी साहित्य को अनेक सुंदर ग्रंथ दे गया।

इनकी अधिकांश रचनाएं जेल में लिखी गई हैं किंतु इनका राजनीतिक व्यक्तित्व इनके साहित्यकार व्यक्तित्व को दबा नहीं सका। बेनीपुरी सी की गद्य लेखन शैली, हिंदी की प्रवृति के सर्वथा अनुकूल है, बातचीत की करीब है और कथ्य को सहज भाव से पाठकों की चेतना में उतार देता है।

बेनीपुरी जी ने उपन्यास, नाटक, कहानी, संस्मरण, निबंध, रेखाचित्र, आदि सभी गद्य विधाओं पर अपनी कलम उठाई है। इनके कुछ प्रमुख ग्रंथ निम्नलिखित हैं:

  • उपन्यास: पतितो के देश में
  • रेखाचित्र: माटी की मूरत, लाल तारा
  • कहानी: चिता के फूल
  • नाटक: अम्बपाली, सीता की माँ, रामराज्य
  • निबंध: गेहूं और गुलाब, वंदे वाणी विनायकौ, मशाल
  • संस्मरण: जंजीरें और दीवारें, मील के पत्थर
  • यात्रा वर्णन: पैरों में पंख बांधकर, उड़ते चलें
  • जीवनी: महाराणा प्रताप, जयप्रकाश नारायण, कार्ल मार्क्स
  • आलोचना: विद्यापति पदावली, बिहारी सतसई का सुबोध टीका

संपादन: बेनीपुरी जी ने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया है जिनमें से कुछ के नाम इस प्रकार हैं:

  1. बालक
  2. तरुण भारत
  3. युवक
  4. किसान-मित्र
  5. कर्मवीर
  6. कैदी
  7. योगी
  8. जनता
  9. हिमालय
  10. नई धारा
  11. चुन्नू मुन्नू

भाषागत विशेषताएं:

रामवृक्ष बेनीपुरी जी शुक्लोत्तर-युग के लेखक है। बेनीपुरी जी के गद्य साहित्य में गहन अनुभूतियों एवं उच्च कल्पनाओं की स्पष्ट झांकी मिलती है। इनकी भाषा में ओज है। इनकी खड़ी बोली में कुछ आंचलिक शब्द भी आ जाते हैं किंतु इन प्रांतीय शब्दों से भाषा के प्रवाह में कोई विघ्न नहीं उपस्थित होता। इनको भाषा का जादूगर माना जाता है। इनकी भाषा में संस्कृत अंग्रेजी और उर्दू के प्रचलित शब्दों का प्रयोग हुआ है। भाषा को सजीव सरल और प्रभावमयी बनाने के लिए मुहावरे और लोकोक्तियां का प्रयोग भी किया है।

शैली के विविध रूप:

बेनीपुरी जी की रचनाओं में विषय के अनुरूप विविध शैलियों के दर्शन होते हैं। इनकी शैली में विविधता है जैसे कहीं चित्रोंपम शैली, कहीं डायरी शैली, कहीं नाटकीय शैली। इनकी भाषा में प्रवाह और ओज विद्यमान हैं, इनके वाक्य छोटे होते हैं किंतु भाव पाठकों को विभोर कर देते हैं।

वर्णनात्मक: बेनीपुरी जी ने इस शैली का प्रयोग कथा साहित्य एवं रेखाचित्रों में किया है। जीवनियों, संस्मरणों, एवं यात्रा वर्णों में भी वर्णनात्मक शैली का प्रयोग हुआ है। इस शैली की भाषा सरल एवं सुबोध एवं वाक्य छोटे-छोटे हैं।

भावात्मक: बेनीपुरी जी ने अपने ललित निबंधों में भावात्मक शैली का प्रयोग किया है। इस शैली में भावों की अधिकता है, भाषा आलंकारिक तथा हृदयस्पर्शी है।

आलोचनात्मक: बेनीपुरी जी ने इस शैली का प्रयोग बिहारी सतसई का टीका और विद्यापति पदावली की समीक्षा लिखने में किया है। इस शैली में वाक्य लम्बे-लम्बे तथा तत्सम शब्दों की अधिकता है।

प्रतीकात्मक: प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग बेनीपुरी जी ज्यादातर अपने ललित निबंधों में किया है। इसमें प्रतीकों के माध्यम से भावों को व्यक्त किया गया है। गेंहूँ और गुलाब नामक अपने निबंध में बेनीपुरी जी ने इस शैली का प्रयोग किया है।इसके अलावा इन्होने आलंकारिक और चित्रात्मक शैलियों का प्रयोग भी किया है।बेनीपुरी जी बहुमुखी प्रतिभा वाले लेखक हैं। इन्होंने गद्य की विभिन्न विधाओं को अपनाकर विपुल मात्रा में साहित्य साधना की है। इनकी साहित्य साधना की शुरुआत पत्रकारिता से हुई। साहित्य साधना और देशभक्ति दोनों ही इनके प्रिय विषय रहे हैं।

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