उमाशंकर जोशी का जीवन परिचय | Biography of Umashankar Joshi in Hindi

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विषयजानकारी
जन्मसन् 1911
जन्म स्थानगुजरात
प्रमुख रचनाएँविश्व शांति, गंगोत्री, निशीथ, प्राचीना, आतिथ्य, वसंत वर्षा, महाप्रस्थान, अभिज्ञा (एकांकी); सापनाभारा, शहीद (कहानी); श्रावणी मेणो, विसामो (उपन्यास) ; पारकांजण्या (निबंध); गोष्ठी, उघाड़ीबारी, क्लांतकवि, म्हारासॉनेट, स्वप्नप्रयाण (संपादन)
संस्कृति पत्रिका का संपादनसन् 1947 से
निधनसन् 1988

उमाशंकर जोशी का जीवन परिचय :

गुजरात, भारत के एक प्रसिद्ध कवि और साहित्यकार उमाशंकर जोशी का जीवन और कार्य। उनका जन्म 21 जुलाई, 1911 को गुजरात के साबरकांठा जिले के एक गांव में हुआ था। अपनी औपचारिक शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने 1930 में असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिए स्कूल छोड़ दिया। बाद में उन्होंने 1936 में मुंबई विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री प्राप्त की।

जोशी एक प्रतिभाशाली कवि और लेखक थे, और उनकी ख्याति 1931 में उनके कविता संग्रह “विश्वशांति” के प्रकाशन के बाद फैलने लगी। उन्होंने लघु कथाएँ, नाटक, उपन्यास, निबंध और आलोचना सहित विभिन्न साहित्यिक रूप लिखे। उन्हें आधुनिक और गांधीवादी युग के सबसे प्रमुख साहित्यकारों में से एक माना जाता है।

अपनी साहित्यिक गतिविधियों के अलावा, जोशी एक प्रोफेसर और संपादक भी थे। उन्होंने गुजरात विश्वविद्यालय में एक प्रोफेसर और विभाग प्रमुख के रूप में कार्य किया, और बाद में विश्वविद्यालय के कुलपति बने। वह राज्यसभा के सदस्य भी थे, और साहित्य अकादमी के अध्यक्ष के रूप में कार्यरत थे। 1979 में, उन्हें शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में नियुक्त किया गया था।

तंग आ गया हूँ / बड़ों की अल्पता से / जी रहा हूँ / देख कर छोटों की बड़ाई

उमाशंकर जोशी: एक प्रतिभाशाली साहित्यकार और शिक्षक :

बीसवीं सदी की गुजराती कविता और साहित्य को नयी भंगिमा और नया स्वर देने वाले उमाशंकर जोशी का साहित्यिक अवदान पूरे भारतीय साहित्य के लिए भी महत्त्वपूर्ण है। उनको परंपरा का गहरा ज्ञान था। कालिदास के अभिज्ञान शाकुंतलम् और भवभूति के उत्तररामचरित का उन्होंने गुजराती में अनुवाद किया। ऐसे अनुवाद गुजराती साहित्य की अभिव्यक्ति क्षमता को बढ़ाने वाले थे।

बतौर कवि उमाशंकर जी ने गुजराती कविता को प्रकृति से जोड़ा, आम जिंदगी के अनुभव से परिचित कराया और नयी शैली दी। जीवन के सामान्य प्रसंगों पर सामान्य बोलचाल की भाषा में कविता लिखने वाले भारतीय आधुनिकतावादियों में अन्यतम हैं जोशी जी ।

कविता के साथ-साथ साहित्य की दूसरी विधाओं में भी उनका योगदान बहुमूल्य है, खासकर साहित्य की आलोचना में। निबंधकार के रूप में गुजराती साहित्य में बेजोड़ माने जाते हैं। उमाशंकर जोशी उन साहित्यिक व्यक्तित्व में हैं जिनका भारत की आज़ादी की लड़ाई से रिश्ता रहा। आजादी की लड़ाई के दौरान वे जेल भी गए।

उमाशंकर जोशी की प्रमुख कृतियों का तालिका:

कृतिश्रेणी
विश्वशांति (6 खंडों में)काव्य ग्रंथ
गंगोत्रीकाव्य
निशीथकाव्य
गुलेपोलांडकाव्य
प्राचीनाकाव्य
आतिथ्य और वसंत वर्षकाव्य
महाप्रस्थानकाव्य ग्रंथ
अभिज्ञाएकांकी
सापनाभराकहानी
शहीदकहानी
श्रावनी मेणोउपन्यास
विसामोउपन्यास
पारंकाजण्यानिबंध
गोष्ठीसंपादन
उघाड़ीबारीसंपादन
क्लांतकविसंपादन
म्हारासॉनेटसंपादन
स्वप्नप्रयाणसंपादन

यहाँ प्रस्तुत कविता छोटा मेरा खेत खेती के रूपक में कवि-कर्म के हर चरण को बाँधने की कोशिश के रूप में पढ़ी जा सकती है। कागज़ का पन्ना, जिस पर रचना शब्दबद्ध होती है, कवि को एक चौकोर खेत की तरह लगता है। इस खेत में किसी अंधड़ (आशय भावनात्मक आँधी से होगा) के प्रभाव से किसी क्षण एक बीज बोया जाता है। यह बीज-रचना विचार और अभिव्यक्ति का हो सकता है। यह मूल रूप कल्पना का सहारा लेकर विकसित होता है और इस प्रक्रिया में स्वयं विगलित हो जाता है। उससे शब्दों के अंकुर निकलते हैं और अंततः कृति एक पूर्ण स्वरूप ग्रहण करती है,

जो कृषि कर्म के लिहाज से पुष्पित- पल्लवित होने की स्थिति है। साहित्यिक कृति से जो अलौकिक रस-धारा फूटती है, वह क्षण में होने वाली रोपाई का ही परिणाम है। पर यह रस-धारा अनंत काल तक चलने वाली कटाई (उत्तम साहित्य कालजयी होता है और असंख्य पाठकों द्वारा असंख्य बार पढ़ा जाता है) से भी कम नहीं होती है। खेत में पैदा होने वाला अन्न कुछ समय के बाद समाप्त हो जाता है, किंतु साहित्य का रस कभी चुकता नहीं।

छोटा मेरा खेत :

छोटा मेरा खेत चौकोना

कागज़ का एक पन्ना,

कोई अंधड़ कहीं से आया

क्षण का बीज वहाँ बोया गया ।

कल्पना के रसायनों को पी

बीज गल गया नि:शेषः;

शब्द के अंकुर फूटे,

पल्लव – पुष्पों से नमित हुआ विशेष ।

झूमने लगे फल,

रस अलौकिक,

अमृत धाराएँ फूटतीं,

रोपाई क्षण की,

कटाई अनंतता की

लुटते रहने से जरा भी नहीं कम होती ।

बगुलों के पंख कविता एक सुंदर दृश्य की कविता है। सौंदर्य का अपेक्षित प्रभाव उत्पन्न करने के लिए कवियों ने कई युक्तियाँ अपनाई हैं, जिसमें से सबसे प्रचलित युक्ति है-सौंदर्य के ब्यौरों के चित्रात्मक वर्णन के साथ अपने मन पर पड़ने वाले उसके प्रभाव का वर्णन । वस्तुगत और आत्मगत के संयोग की यह युक्ति पाठक को उस मूल सौंदर्य के काफ़ी निकट ले जाती है। जोशी जी की इस कविता में ऐसा ही है। कवि काले बादलों से भरे आकाश में पंक्ति बनाकर उड़ते सफ़ेद बगुलों को देखता है।

वे कजरारे बादलों के ऊपर तैरती साँझ की श्वेत काया के समान प्रतीत होते हैं। यह दृश्य इतना नयनाभिराम है कि कवि और सब कुछ भूलकर उसी में अटका-सा रह जाता है। वह इस माया से अपने को बचाने की गुहार लगाता है। क्या यह सौंदर्य से बाँधने और बिंधने की चरम स्थिति को व्यक्त करने का एक तरीका है ? प्रस्तुत दोनों कविताओं का गुजराती से हिंदी रूपांतरण रघुवीर चौधरी और भोलाभाई पटेल ने किया है।

बगुलों के पंख :

नभ में पाँती – बँधे बगुलों के पंख,

चुराए लिए जातीं वे मेरी आँखें।

कजरारे बादलों की छाई नभ छाया,

तैरती साँझ की सतेज श्वेत काया ।

हौले हौले जाती मुझे बाँध निज माया से।

उसे कोई तनिक रोक रक्खो ।

वह तो चुराए लिए जाती मेरी आँखें

नभ में पाँती – बँधी बगुलों की पाँखें ।

उमाशंकर जोशी: पुरस्कार / सम्मान:

  • ज्ञानपीठ पुरस्कार (1987)
  • साहित्य अकादमी पुरस्कार (1973)

साहित्य और शिक्षा में जोशी के योगदान को व्यापक रूप से मान्यता मिली, और उन्हें विभिन्न विश्वविद्यालयों से डॉक्टरेट की कई मानद उपाधियों से सम्मानित किया गया। 19 दिसंबर, 1988 को गुजरात और भारत में साहित्य और शिक्षा की समृद्ध विरासत को पीछे छोड़ते हुए उनका निधन हो गया।

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