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कबीर दास (Kabir Das Biography) का जीवन परिचय 300 शब्दों में, साहित्यिक विशेषताएं, रचनाएँ एवं भाषा शैली और उनकी प्रमुख रचनाएँ एवं कृतियाँ। कबीर दास का जीवन परिचय एवं साहित्यिक परिचय नीचे दिया गया है।
कबीर दास का जीवन परिचय in short:
जीवन परिचय — कबीर जी हिंदी के संत कवियों में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उनका जन्म सन् 1398 ई० में वाराणसी में तथा निधन सन् 1518 ई० में काशी के निकट मगहर में हुआ था। जनश्रुति है कि उनका जन्म होने पर उनकी माँ ने उन्हें काशी के लहरतारा नामक तालाब के तट पर फेंक दिया था। वहां से गुज़रते हुए नीरू और नीमा नामक जुलाहा दंपत्ति ने उस बालक को उठा लिया और उसका पालन-पोषण किया। कबीर जी के गुरु का नाम रामानंद था। उन्होंने स्वयं भी स्वीकार किया है-
काशी में हम प्रगट भये, रामानंद चेताये।
कबीर जी ने अनेक स्थानों पर अपने आपको जुलाहा कहा है। उनकी रचनाओं में इस व्यवसाय के अनेक शब्दों- ताना-बाना, चरखा-पूनी आदि का प्रयोग हुआ है। कबीर ने गृहस्थाश्रम में भी पाँव रखा था। उनकी पत्नी का नाम लोई था । कमाल और कमाली नाम के उनके बेटा-बेटी भी थे। वे वैरागी प्रवृत्ति के थे ।
कबीर दास जी की प्रमुख रचनाएं:
रचनाएं – कबीर ने किसी विद्यालय में विधिवत् शिक्षा प्राप्त नहीं की थी। वे बहुश्रुत थे। उनके पास प्रतिभा और ज्ञान की कमी नहीं थी। उन्होंने पंडितों एवं साधु-संतों की संगति से अद्भुत ज्ञान प्राप्त किया था। अपने गुरु रामानंद से उन्हें वेदांत तथा उपनिषदों का ज्ञान प्राप्त हुआ। अनेक स्थानों पर भ्रमण करने के कारण उनके व्यावहारिक ज्ञान में भी पर्याप्त वृद्धि हो गई थी। उन्होंने शास्त्र – ज्ञान को भी बड़ी सरल भाषा में प्रस्तुत किया। इस विषय में उनका कथन है-
तू कहता कागद की लेखी, मैं कहता आंखन की देखी।
कबीर ने साखियों (दोहों), सबदों और रमैनियों की रचना की है जिसका संग्रह ‘बीजक’ में हुआ है।
कबीर दास जी की काव्यगत विशेषताएं:
काव्यगत विशेषताएं- कबीर जी एक कवि भक्त एवं सुधारक के रूप में हमारे सामने आते हैं। वे सामाजिक रूढ़ियों, अंधविश्वासों एवं शोषण की प्रवृत्ति के प्रबल विरोधी थे। वे हिंदू एवं मुस्लिम की एकता के समर्थक थे। उनके विचार बड़े उदार थे। संकीर्णता एवं आडंबर के स्थान पर वे हृदय की शुद्धता और चरित्र की पवित्रता पर बल देते थे। उन्होंने सत्य एवं अहिंसा के पथ पर चलकर ईश्वर को प्राप्त करने का उपदेश दिया। उनकी कविता में सच्चे गुरु का भी गौरव गान मिलता है।
कबीर दास जी की भाषा-शैली:
भाषा-शैली — कबीर जी की भाषा का रूप स्थिर नहीं है। उनकी भाषा में अनेक भाषाओं के शब्दों का मिश्रण है। अनेक स्थानों पर घूमने के कारण उनकी भाषा में अवधी, भोजपुरी, राजस्थानी एवं पंजाबी के शब्द आ मिले हैं। यत्र-तत्र उर्दू-फ़ारसी शब्दों का भी प्रभाव दिखाई देता है। शैली मुक्तक है। उन्होंने साखियों, रमैनियों तथा सबदों की रचना की है। डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इन्हें ‘वाणी का डिक्टेटर’ कहा है।