फ़िराक गोरखपुरी का जीवन परिचय | Biography of Firaq Gorakhpuri

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विषयविवरण
मूल नामरघुपति सहाय ‘फ़िराक’
जन्म तिथि28 अगस्त, सन् 1896
जन्म स्थानगोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
शिक्षारामकृष्ण की कहानियों से शुरुआत, बाद की शिक्षा अरबी, फ़ारसी और अंग्रेजी में।
पदडिप्टी कलेक्टर (1917), अध्यापक (इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में)
स्वतंत्रता आंदोलनहिस्सेदारी (1920), डेढ़ वर्ष की जेल
सम्मानसाहित्य अकादेमी पुरस्कार (गुले-नग्मा), ज्ञानपीठ पुरस्कार, सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड
महत्वपूर्ण कृतियाँगुले नग्मा, बज्मे जिंदगी: रंगे-शायरी, उर्दू गजल
निधन तिथिसन् 1982

फ़िराक गोरखपुरी का जीवन परिचय :

फ़िराक़ गोरखपुरी” उर्दू भाषा के महान रचनाकारों में से एक हैं, जिन्हें उनकी शायरी के उपनाम से अधिक जाना जाता है। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में हुआ था। फ़िराक़ जी की शिक्षा रामकृष्ण की कहानियों से शुरू हुई थी और उन्होंने अरबी, फ़ारसी और अंग्रेजी भाषाओं में भी शिक्षा प्राप्त की थी। उन्होंने बाद में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के अध्यापक के रूप में काम किया और उर्दू भाषा में अपनी रचनाओं को लिखते रहे।

उन्होंने अपनी उपन्यास, कविताएं और लेखन से अधिकतर उर्दू भाषा को एक नया रूप दिया है। इनकी उत्कृष्ट रचनाएं साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार और सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित हुई हैं। इनके लेखन से सभी लोगों को प्रभावित किया जाता है और उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में एक महान व्यक्तित्व के रूप में याद किया जाता है।

अब तुमसे रुखसत होता हूँ आओ सँभालो साज़े- गज़ल /

नए तराने छेड़ो / मेरे नग्मों को नींद आती है

फ़िराक गोरखपुरी: उर्दू शायरी में नई भाषा और नए विषयों का प्रयोग :

उर्दू शायरी का बड़ा हिस्सा रुमानियत, रहस्य और शास्त्रीयता से बँधा रहा है जिसमें लोकजीवन और प्रकृति के पक्ष बहुत कम उभर पाए हैं। नज़ीर अकबराबादी, इल्ताफ़ हुसैन हाली जैसे जिन कुछ शायरों ने इस रिवायत को तोड़ा है, उनमें एक प्रमुख नाम फ़िराक गोरखपुरी का भी है।

फ़िराक ने परंपरागत भावबोध और शब्द भंडार का उपयोग करते हुए उसे नयी भाषा और नए विषयों से जोड़ा। उनके यहाँ सामाजिक दुख-दर्द व्यक्तिगत अनुभूति बनकर शायरी में ढला है। इंसान के हाथों इंसान पर जो गुज़रती है उसकी तल्ख सच्चाई और आने वाले कल के प्रति एक उम्मीद, दोनों को भारतीय संस्कृति और लोकभाषा के प्रतीकों से जोड़कर फ़िराक ने अपनी शायरी का अनूठा महल खड़ा किया।

उर्दू शायरी अपने लाक्षणिक प्रयोगों और चुस्त मुहावरेदारी के लिए विख्यात है। शेर लिखे नहीं जाते, कहे जाते हैं। यानी एक तरह का संवाद प्रमुख होता है। मीर और गालिब की तरह फ़िराक ने भी कहने की इस शैली को साधकर आम आदमी या साधारण जन से अपनी बात कही है।

प्रकृति, मौसम और भौतिक जगत के सौंदर्य को शायरी का विषय बनाते हुए कहा, “दिव्यता भौतिकता से पृथक वस्तु नहीं है। जिसे हम भौतिक कहते हैं वही दिव्य भी है। “

फिराक गोरखपुरी: एक कवि, शायर और निबंधकार:

फिराक गोरखपुरी (Firaq Gorakhpuri) एक भारतीय कवि, निबंधकार, शायर और अंग्रेजी के शिक्षक थे। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की और उनकी नियुक्ति डिप्टी कलेक्टर के पद पर हो गई। उन्होंने कांग्रेस के साथ जुड़े और गांधीजी के असहयोग आंदोलन में सम्मिलित हुए। यह कवि कुछ समय के लिए जेल में रहे और बाद में वे पंडित नेहरू के सहायक के रूप में कांग्रेस का काम भी करते रहे।

फिराक गोरखपुरी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के शिक्षक के रूप में काम किया और उनकी शायरी बड़ी उच्चकोटि की मानी गई। उन्होंने बड़ी मात्रा में रचनायें की थीं जो वहाँ से बाहर जाकर पूरे देश में प्रसिद्ध हुईं।

फिराक गोरखपुरी की कविता संग्रह “गुलेनगमा” के लिए 1960 में साहित्य अकादमी पुरुस्कार मिला और इसी रचना के लिए उन्हें 1970 में भारतीय ज्ञानपीठ पुरुस्कार से सम्मानित किया गया। फिराक साहब का 85 वर्ष की उम्र में 3 मार्च 1982 में निधन हो गया था |

फ़िराक गोरखपुरी की प्रसिद्ध रचनाएँ और भाषाएँ :

सीरीजरचनाएँ
प्रसिद्ध रचनाएँगुल-ए-नगमा, मश्अल, रूह-ए-कायनात, नग्म-ए-साज, ग़ज़लिस्तान, शेरिस्तान, शबनमिस्तान, रूप, धरती की करवट, गुलबाग, रम्ज व कायनात, चिरागां, शोअला व साज, हजार दास्तान, बज्मे जिन्दगी, रंगे शायरी, हिंडोला, जुगनू, नकूश, आधीरात, परछाइयाँ, तरान-ए-इश्क, सत्यम् शिवम् सुन्दरम्
अन्य रचनाएँएक उपन्यास साधु और कुटिया, कई कहानियाँ, दस गद्य कृतियां
भाषाएँउर्दू, हिंदी और अंग्रेजी

फ़िराक की रुबाई में हिंदी का एक घरेलू रूप दिखता है। भाषा सहज और प्रसंग भी सूरदास के वात्सल्य वर्णन की सादगी की याद दिलाता है। मुझे चाँद चाहिए, मैया री, मैं चंद्र खिलौना लैहों जैसे बिंब आज भी उन बच्चों के लिए एक मनलुभावन खिलौना है जो वातानुकूलित कमरों में बंद नहीं रहते, छत पर चटाई बिछाकर सोते हैं तथा चंदामामा के नदिया किनारे उतरने और कल्पित दूध-भात खाने की कल्पना से निहाल हैं।

मामा भी तो एक साक्षात खिलौना है बच्चों का-खासकर उन बच्चों का जिनके जीवन में महँगे खिलौने भले न हों पर जो चंद्राभ रिश्तों का मर्म समझते हैं। एक कठिन दौर है यह-

घर लौट बहुत रोए माँ-बाप अकेले में,
मिट्टी के खिलौने भी सस्ते न थे मेले में

फ़िराक गोरखपुरी को पुरस्कार / सम्मान:

  • गुले-नग्मा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार
  • ज्ञानपीठ पुरस्कार
  • सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार
  • साहित्य अकादमी का सदस्य मनोनीत कर लिया जाना (1970)
  • पद्म भूषण से सम्मानित किया जाना (1968)
  • साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सम्मानित किया जाना (1968)

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