- प्रस्तावना
2. युवकों के कर्तव्य
(1) अनुशासन का पालन ( 11 ) कठोर परिश्रम (iii) संगठन और नेतृत्व (iv) शिक्षा-प्रसार (v) समाज-सुधार (vi) समाज-सेवा (vii) राष्ट्रीय सम्पति की सुरक्षा (viii) सास्कृतिक परम्परमों की रक्षा (ix) विकास योजनाओं में सहयोग
3. उपसंहार
प्रस्तावना – युवावस्था जीवन का वसन्त काल है। यह जीवन का स्वर्णिम काल होता है जब प्रकृति की घोर से दी गई समम्न शारीरिक र मान तिक शक्तियां पूरे उभार पर होती हैं। नपा सून औौर नया जोश होता है पता पोर हार मान लेना जवानी जानती ही नहीं है। समार के सभी महान कार्यों ना सेहरा युवकों के ही सिर बांधा गया है। युवा शक्ति मे अधी का सा वेग होता है जो अन्याय और धनाचारों के स्थापित स्तम्भों को उखाड़ फेंकने की सामर्थ्य रखता है तथा व्यापक व की सी नव-जीवन दायिनी शक्ति होती है। ससार सदा ही नवनिर्माण के लिए युवा शक्ति पर निर्भर रहता भाया है। युवाशक्ति ने जब भी करवट ली है ससार का काया पलट कर डाला है। संसार का इतिहास युवा-शकि के धन और सापजनक कार्यों का ही लेखा-जोखा है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत मे राष्ट्र-निर्माण का कार्य चल रहा है। यह महान कार्य देश की युवा शक्ति के योगदान के बिना पूरा होना सम्भव नहीं है। देश के युवको को चाहिए कि वे राष्ट्र-निर्माण के कार्य मे तन-मन से जुट जान और बदली हुई परिस्थितियों के अनुसार एक सुदृढ समृद्ध एवं विकसित राष्ट्र के रूप में विश्व के मानचित्र पर भारत का एक गौरव पूर्ण चित्र प्रस्तुत करें।
युवको के कर्तव्य भारत को युवापोटी निम्नलिखित कर्तव्यों का पालन करके राष्ट्र-निर्माण के महान कार्य को पूरा कर सकती है :-
(1) अनुशासन का पालन – देश की युवापोत्रो मे अनुशासन को भावना उत्पन्न होना अत्यन्त आवश्यक है। अनुशासन के बिना व्यक्ति, समाज और राष्ट्र किसी का भी
हिव नही हो सकता। किसी भी जन-कल्याणकारी योजना की सफलता धनुशासन पर ही बाधारित होती है। यह एक खेद का विषय है कि स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चादी में अनुशासन की भावना का ह्रास हुआ है। स्वच्छन्दता और उच्चलता की प्रवृत्ति दिन प्रतिदिन बढती जा रही है। इससे हमारा राष्ट्रीय चरित्र दूषित होने लगा है। स्वायं पक्षपात भ्रष्टाचार और अनाचार की घटनाएँ बढ़ रही हैं। कानून और व्यवस्था की स्थिति पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पडने लगा है। इससे राष्ट्र कमजोर हो रहा है और जन-कल्याणकारी योजना की सफलता मे वायाएं उत्पन्न हो रही हैं। एक मुदृड तथा समृद्ध राष्ट्र का स्वप्न अनुशासन के प्रभाव से साकार नहीं हो सकता। प्रत युवको का यह पहला कर्तव्य है कि वे जीवन के प्रत्येक स्तर पर मनुशासन की स्थापना में व्यक्तिगत तथा सामूहिक रूप से सह- योग करें।
(2)कठोर परिश्रम- कठोर परिश्रम परिश्रम का महत्व सर्वव्यापी है। परिश्रम ही सफलता नौ कु जो है। ठोर परिश्रम से सम्भव दिखने वाले कार्य भी सम्भव हो जाते हैं। राष्ट्र-निर्माण का महान कार्य बिना परिश्रम के बानी सम्भव नहीं हो सकता। माधु- निक युवा पीढी में परिश्रम से कराने की भावना बढने नमी है। शारीरिक श्रम को तो हीन भावना से देखने को प्रवृत्ति वड रही है। कम से कम परिश्रम से अधि से अधिक लाभ प्राप्त करने से भावना बनती जा रही है। यह एक अशुभ लक्षण है। इससे राष्ट्रीय उत्पादन पर तो बुरा असर पड ही रहा है साथ ही युवका की शक्ति और समा उपयोग न होने के कारण के शारीरिक रूप से का होते जारहे हैं। उनमें पालस्य, प्रमाद और विलासिता के भाव उत्पन्न होने लगे है। राष्ट्र-निर्माण कार्य में यह प्रवृत्ति बहुत धन है। पत युवापोडी को चाहिए कि वह धनवरत कठोर थम मे लीन हो जाय। तभी राष्ट्र मुद्ध मोर सम्पन बन सकेगा
(3)संगठन और नेतृत्व- संगठनका नेतृत्व राष्ट्र की मानवीय शक्ति के संगठित हुए बिना राष्ट्र-निर्माण वा सम्भव नहीं है। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व विदेशी मासका ने अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए हमारी संगठित इकाई को जाति, धर्म, सम्प्रदाय भोर भाषा के नाम पर विभाजित करने का प्रयास किया था। उनका प्रभाव हमारे समाज मे मद भी यदाकदा दिखाई पड जाता है। यह राष्ट्र के लिए हानिकारक है। भारत का प्रत्येक निवासी एक ही राष्ट्र का नागरिक है। भेद-भाव की भावना फैलाने की हमारी युवापीढ़ी के लिए एक चुनौती है। युवों को चाहिए कि वे इस चुनौती का डटकर मुकाबला करें मौर राष्ट्र मे उपलब्ध सभी साधनों को समत शक्ति से राष्ट्र-निर्माण के कार्य मे लगे रहें। इसके साथ ही उन्हें समाज को कुल नेतृत्व भी प्रदान करना चाहिए जिससे माने वाली पौडियां उनके बताये गये मार्ग
(4) शिक्षा-प्रसार – शिक्षा एक ऐसा प्रकाश है जिसके प्राप्त हो जाने पर मनुष्य के भीतर-बाहर का अन्धकार दूर हो जाता है और उसमे विवेक का भाव उत्पन्न हो जाता है जिससे अनेक समस्याओं पर समाधान स्वत हो जाता है। यह हमारा दुर्भाग्य है कि सदियों की गुलामी के कारण हमारे देश मे पढे-लिखे लोगो की गन्या बहुत कम है। हमारे देश की वर्तमान बुवा-मोदी-विशेषकर विद्यार्थी शिक्षा-प्रसार के कार्य में बहुत अधिक सहायक सिद्ध हो सकते हैं। वे अपने अवकाश- काल मे अपने घर, मारा-पीस तथा अन्य स्थानों पर बालको, प्रौधे और स्त्रियो को पढ़ना-लिखना सिखाकर समाज और राष्ट्र की बहुत बडी सेवा कर सकते हैं।
(5)समाज-सुधार- समाज-सुधार समाज मे व्याप्त अन्धविश्वासों, कुरीतियां मोर रूढ़ियों के रहते राष्ट्र सुदृढ एव सम्पन्न नहीं बन सकता। युवा पीढी को चाहिए कि वह इन बुराइयों को समाप्त करने में पहल करें। सुमा-छूत, दहेज आदि ऐसी रुटियाँ और कुरीतियाँ हैं जिनको केवल युवा-पोटी ही समाप्त कर सकती है कानून बना देने से इसमे कोई लाभ नहीं हो सकता। इसके अलावा धार्मिक विश्वास भी उन्हीं के द्वारा समाप्त किये जा सकते हैं। यदि युवा इन्हें समाप्त करने वासस्य करते तो शीघ्र ही समाज में पाश्चजनक सुधार हो सकता है और राष्ट्र को मजबूती को बत मिल सकता है।
(6) समाज-सेवा- जब तक समाज में विषमताएं व्याप्त रहेगी, गोपण और प्रत्याचार होते रहेंगे तथा धमीर-गरीब में अन्तर कम नहीं होगा, राष्ट्र मजबूत नहीं बन सकेगा। देश की युवा पीढी को ही विषमताओं को समाप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी है। वे जागरूक और संगठित रह कर दीन, हीन तथा ras वर्ग के लोगों के हितों की रक्षा करें तथा उनमें ऊंचा उठने के लिए आत्म- विश्वास पैदा करें तो विषमताएं समाप्त होकर एक मजबूत राष्ट्र की नीव रखी जा सकती है।
(7)राष्ट्रीय सम्पति की सुरक्षा- राष्ट्रीय सम्पत्ति की सुरक्षा-प्राप देखने में जाता है कि अपनी मांगे मनवाने के लिए आन्दोलनकारी राष्ट्रीय सम्पति-बस, रेल, इमारतें आदि को क्षति पहुचाते हैं। अपनी उचित मांगो की ओर सरकार का ध्यान प्राकर्षित करने तथा उस पर नैतिक दबाव डालने के लिए हड़ताल और आन्दोलन जनता का हथियार है किन्तु आन्दोलन के दौरान राष्ट्रीय सम्पत्ति को क्षति पहुंचाने से राष्ट्र को हानि होती है और राष्ट्र कमजोर बनता है। युवा पीढी को इस सम्बन्ध मे पूरी शाद- धानी बरतनी चाहिए तथा सतर्क एवं जागरूक रहकर राष्ट्रीय सम्पति की सुरक्षा की जिम्मेदारी निभानी चाहिए।
(8)सास्कृतिक परम्परमों की रक्षा- सांस्कृतिक परम्परामों की रक्षा किसी भी देश की मात्मा उसकी सस्कृति है। अपनी सास्कृतिक परम्परा के कारण ही कोई भी देश संसार में सम्मानित होता है। यह सौभाग्य की बात है कि हमारे देश का सस्कृति और उसकी परम्पराएं बहुत ऊँची है। हजारो वर्ष पुरानी हमारी संस्कृति अनेक उथल- पुथल और परिवर्तनों के बाद भी अक्षुण बनी हुई है। युवा पौडी को इसे बनाये रखने का दायित्व निभाना चाहिए। पश्चिमी सभ्यता वो चाय से धन्धे बन वर अपनी सास्कृतिक परम्पराम्रो को त्यागने वाले युवक-युवतियाँ भारी भूल कर रह है। उनका यह कदम आत्मपाती है। यदि सकृति नष्ट हो गई तो देश का गौरव पूर्ण ही समाप्त हो जाय। युवा पोटी का यह कर्तव्य है कि अपने परम्परागत सांस्कृतिक स्वरूप को सही रूप में पहचानें और उसी परम्पराम्रो की रक्षा करने का प्रयत्न करें।
(9)विकास योजनाओं में सहयोग– विकास योजनाओ मे सहयोग सरकार देश का योजनावद्ध विकास करने के लिए लम्बी अवधि की विकास योजनाएं चलाती है किन्तु इन योजनाया की सफलता जन सहयोग के बिना सम्भव नहीं है। युवा योat को चाहिए कि इन योजनाओं के बारे मे जन-समुदाय को जानकारी बराये तथा इनको सफलता के लिए अपनी ओर से पूरा सहयोग करे राष्ट्र का पार्थिक-सामाजिक विकास इन्ही योजनाम पर निर्भर है। ये योजनाएँ हो राष्ट्र को एक सुदृढ बाधार प्रदान करेंगी। इनमें सहयोग देकर युवक राष्ट्र निर्माण के मे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सरते है।
उपसहार- राष्ट्र निर्माण का कार्य एक महान कार्य है। पूर्ण सुजाता, कठोर परिश्रम और उत्तरदायित्व की भावना में ही यह महान कार्य पूरा हो सकता है। किसी भी राष्ट्र की सबसे मूल्यवान पूँजी और पति उसकी पुवा पीढी ही है। युवा शक्ति ही इस कठिन कार्य को सरलता से कर सकती है। याज के युवक ही मन राष्ट्र के कर्णधार बनेगे एक मुह तथा समृद्ध राष्ट्र का साभ र उन्हें ही मिलने वाला है। राष्ट्र निमाण कार्य स्वार्थ और परमार्थ दोनो ही दृष्टियों से साभकारी है यत युवापोटी को चाहिए कि वह अपनी पूर्ण शक्ति और क्षमता के साथ इस ना में जुट जाय तथा इतिहास में अपना नाम कर दे।